Thursday, January 4, 2024

उसमे जो बुरा है

 उसमे जो बुरा है, मुझे बुरा नही लगता,

उन हाथों से हुआ गलत, गलत हुआ नही लगता,


एक सजा है ज़ालिम से दिल लगाना,

जिस सजा में जफा का पता नही लगता,


और उस की गलतियों का क्या बुरा मानना,

जिस गुंहेगार के गुंहा खुद खुदा नहीं लिखता,


वो अदालत में भी जुर्म करे तो फैसला आए,

के जुर्म हुआ है पर मुजरिम ये नही लगता,

काला

काला रंग
ये साला रंग,
है जात का रंग,
ये रात का रंग,
औकात का रंग,
हालात का रंग,
ये आंख में चुबता,
आंख का रंग,
ये डर का रंग,
हर घर का रंग,
सभी रंगो में,
मारता रंग,
ये सर पर चढ़ता,
सर का रंग,
ये तपता रंग,
ये जलता रंग,
अगर यूं ही रहा तो,
कल का रंग,

गुल बाग में खिला रहे

ना हो फिर ये जख्म रा,

कैसे काबू हो इस आदत पे,


भर आता है दिल किनारों तक,

तो बह जाता है कागज़ पे,


एक दिल एक घर ना बना,

महल बनते इस लागत पे,


एक हाथ मिलाकर ना मिला,

मिलता खुदा इबादत से,


वो हसीं कोई इशारा नहीं,

शहर आबाद है उस आदत पे,


वो गुल बाग में खिला रहे,

तुम छुना उसे इजाजत से,

मेहमान का घर

 ये जिस्म एक मेहमान का घर,

मुझे लगता किसी अंजान का घर,

मयकश सी एक जान का घर,

ये बंजर और बेजान सा घर,

कभी सूरज तो कभी चांद का घर,

ये काटो और गुलिस्तां का घर,

सचाई का, ईमान का घर,

एक झूठे और बईमान का घर,

खामोश, जड़वत, बेजुबान का घर,

या खींचती हुई एक तान का घर,

नदियों का, मैदान का घर,

मखमल और पाषाण का घर,

कभी देवता कभी शतान का घर,

ये जिस्म कई इंसान का घर,

मैं ढूंढू जिसमे अपना घर,

मेरा घर समशान का घर

Tuesday, January 2, 2024

एक लम्हा यूं गुज़र गया

एक लम्हा यूं गुज़र गया,

यादों को सर कर गया,

एक उम्र तक जो गैर था,

आज दिल को घर कर गया,

मेरे मसले सब हल किए,

जाते जा मसला कर गया,

मेरे सर से जो बादल गया,

आंखों में पानी भर गया,

सागर से जो मैं जुदा हुआ,

बन रा यूं मचल गया,

कुछ देर बादल से जुड़ा,

फिर बारिश मैं बदल गया,

मैं राहगीर, मेरा रास्ता,

एक ख्वाब था, जो बिखर गय,

अब यहां से मैं जाऊ कहां,

मेरा जाना मुश्किल कर गया,

एक लम्हा यूं गुज़र गया,

यादों को सर कर गया,

जिंदगी के मसले

 जिंदगी के मसले हैं, 

वादे और कसमें हैं,

आंख में छिपे अश्क,

गाल पे आ फिसले हैं,

आह! होठों की जद में है, 

होठ अपनी ज़िद में हैं,

अश्क लबों से जो आ मिले,

कैदी कैद से निकले हैं,

दिल मासूम मुफलिस है,

ये मसले सारे दिल के हैं,

इस बार तो सवरना था,

अब किस दर पे आके बिखरे हैं

मैं स्टेशन से रेल बदलता हूं

 मैं स्टेशन से रेल बदलता हूं,

ये रेल कितने स्टेशन बदलती है,

हर स्टेशन पे लोग बदलते हैं,

लोगो के लिबास बदलते हैं, 

जीने के हिसाब बदलते हैं,

जानवर अपनी ज़मीन बदलते हैं,

पक्षी अपना आसमान बदलते हैं,

आसमान अपने रंग बदलता है,

मौसम अपने ढंग बदलता है,

धीरे धीरे समय बदलता है,

जीवन उसके संग बदलता है,

बादल अपना आकार बदलते हैं,

बरखा और बहार बदलते हैं,

बूंद नदी में बदलती है,

नदियां और पहाड़ बदलते हैं,

मैं स्टेशन से रेल बदलता हूं,

हर स्टेशन पर मैं बदलता हूं

Monday, January 1, 2024

नासमझ

जो सब समझे, वो ना समझे,

पीतल को भी, सोना समझे,

है नासमझ, ये वो समझे,

सागर को भी, थोड़ा समझे,

किसी का गम, ना समझे,

रिश्तों को मगज़, समझोता समझे,

घर जला के, बगल का,

अपना घर, बचा समझे,

गर जन को जन, ना समझे,

तो मन का धन, क्या समझे,

दिल बदल कर, पत्थर में,

पत्थर को, खुदा समझे,

लगता है

 आज थोड़ा बेसबर, शाम सफर लगता है,

बरसने की फिराक में, अबर लगता है,


यू तो हर शाम, काम में लगती है,

आज सांसों पर मौसम का असर लगता है,

 

सोच सोच के मुझे ये डर लगता है,

कल घर नहीं लगेगा, जो घर लगता है,


आज आंख लगे, और कल ना खुले,

बिस्तर मेरे गले, इस कदर लगता है,

 

उमर लग जाती है, दिल लगाने में,

और फिर दिल कही और जा लगता है,


मेरे साथ ऐसा होगा नही, मुझे लगता नहीं,

हो भी सकता है, मगर लगता है,

 

रोने से आंखे साफ होती हैं,

जख्म हसी से पता लगता है,


वो खेलना कूदना, कितना सही लगता था,

ये शेर शायरी, गलत संगत का असर लगता है,

परिंदे

एक चिड़ियां को एक पेड़ पर, चार कौओं ने घेर लिया

दो कबूतर थे, एक बगुला था, पर सबने मुंह फेर लिया,

चिड़ियां जानती थी कुछ गलत होगा, चिड़िया बेहद दर गई,

उसने आखिरी सांस तक कोशिश की,आखिरी सांस लेकर मर गई,

चिड़ियां के मरने के बाद कबूतर, बगुला, सब उसकी आवाज बन गए,

पहले उल्लू बन बैठे थे,अब बाज बन गए,

फिर इंसाफ के पेड़ पर बुलाया गया, सब परिंदो को,

सोचने लगे क्या सजा दे, इन दरिंदो को,

कई साल लगाकर, चिड़िया का इंसाफ किया गया,

कुछ साल की सजा, फिर कौओं को माफ किया गया,

नजाने ऐसी कितनी चिड़िया हैं, जहान में,

फिर भी खुले घूमते हैं कौए, आसमान में,

महताब

महताब तेरी उल्फत में,

हाल कुछ यूं है,

जिस्म में दिल है,

दिल में तू है,

कैसे तय हो ये फासला,

कैसे बात हो तुझे,

मैं ज़मीन पर क्यूं हूं,

तू आसमान में क्यों है,

तुझे पाने का फरेब नही,

तुझे देखना भी सुकूं है,

तू क्यों पलट के बात करे,

मैं मैं हूंतू तू है,

दो कदम

 दो कदम का था सफर,

ये लंबा किसने खींचा है,

ये रिश्ता कैसे उधड़ा है,

ये धागा किसने खींचा है,

किसने खट खटाया है दरवाजा,

खिड़की पे परदा किसने खींचा है,

आंख से आसू किसके टपका हैं,

कुवे से पानी किसने खींचा है,

किसने बनादी हैं ये लकीरें,

इश्क में दायरा किसने खींचा है

एक बोसा काफी था माथे पे,

ये मसला किसने खींचा है,

चूड़ियां

जान जल गई आग में,

साप बैठा भाग में,

चूड़ियां खरीदी बजार से,

हथकड़ियां बन गई हाथ में,

नभ सोचा था खाब में,

जिंदगी कटी सुराख में,

इसी सबब से इज्जत लूटी,

इज्जत बचान की लाग में,

घुल गई वा सराब में,

सराबी मिला सुहाग में,

कोन कान उसे सुने,

जब मोल किया मां बाप ने,

दीद

 मैं किवें हटावां दीदां नू,

दीदां दी अप‌‌णी मर्ज़ी ,

मैं किवें समझावां फुल्ला नू,

फुल्लां दी तैथों कटदी ,

अस्सी जोंदे देख तेरे बुल्ला नू,

बुल्लां ना जद तू हसदी ,

तू छेत्ती सुलझाला ज़ुल्फां नू,

ज़ुल्फां जिंदगी फसगी ,

कटदी कटदी कट जांदी,

हूं कटणी औखी लगदी ,

मैं तैनू अवें तकदा यां,

जिवे चांद नू चकोर तकदी ,

तितलियां नाल तेरा उठना बैणl,

अंबरां तो होणी लगदी ,

मैं खाब वेखदा जिंदगी दे,

खाबा तो सोणी लगदी ,

अन्ना काली काली अंखां तो,

तू काला जादू करदी ,

ते काला सुरमा पोंदी ,

मेरे दिल विच काला करदी ,

सारे तैथों सजदा करदे ने,

जदो काला पाके सज़दी ,

तू सजके सामने ना आया कर,

तैथो साढ्ढी अर्जी ,

भवरे तेरी खुशबू पढ़दे ने,

फुल्ला दी तैथों कटदी ,

मैं किवें हटवा दीदा नू,

दीदा दी अप‌‌णी मर्ज़ी ,

उसमे जो बुरा है

 उसमे जो बुरा है, मुझे बुरा नही लगता, उन हाथों से हुआ गलत, गलत हुआ नही लगता, एक सजा है ज़ालिम से दिल लगाना, जिस सजा में जफा का पता नही लगता,...