उसमे जो बुरा है, मुझे बुरा नही लगता,
उन हाथों से हुआ गलत, गलत हुआ नही लगता,
एक सजा है ज़ालिम से दिल लगाना,
जिस सजा में जफा का पता नही लगता,
और उस की गलतियों का क्या बुरा मानना,
जिस गुंहेगार के गुंहा खुद खुदा नहीं लिखता,
वो अदालत में भी जुर्म करे तो फैसला आए,
के जुर्म हुआ है पर मुजरिम ये नही लगता,