Friday, January 6, 2023

मैं क्या हूं, और ये जीवन क्या है

मैं क्या हूंऔर ये जीवन क्या हैजबसे होश आया है मैं इन दो सवालों का जवाब ढूंढने में गुम हूंइन दो सवालों ने मुझे काफी बनाया और बर्बाद किया हैजैसे जहां एक तरफ एस्थेनोस्फीयर में बनती कन्वेंशनल(पारंपरिकधारा से धरती(सथलमंडलफटती है और उससे निकलने वाले खनिज भरपूर लावा से टेक्टानिक परत का निर्माण होता हैवहीं दूसरी तरफ दुनियां  के किसी और कोने में एक भारी टेक्टानिक परत अपने से कम भारी परत  के नीचे धस कर नष्ट हो जाती है

 जैसे एक तरफ गरम सागर से वाष्प में बदलता जल ऊंचाई की और जाकर बादल का निर्माण करता हैवहीं दूसरी और बादल हवा के साथ चलअलग अलग स्थान पर बरसाता है और फिर से दरिया मेंनदिया मेंसमुंदर में बदलता है

 जहां एक तरफ सैल डिवाइड होते हैंहम पैदा होते हैंसैल रोज मरते हैंसैल रोज बनते हैंवही दूसरी तरफ जब सैल मरने की प्रक्रियासैल बनने की प्रक्रिया से धीमी हो जाती हैं हम भी एक अन्त की और या नई शुरुवात की और चलने लगते हैं,


 अगर शुरुवात ही अन्त है तो विज्ञान के हिसाब से कार्य सुन्य हुआऐसे गोल गोल घूमने का क्या अर्थशायद जीवन को शब्दो में पिरोना इतना आसान नहींथोड़ी और कोशिश होनी चाहिए,


एक गोलाकार प्रक्रिया कई अन्य गोलाकार  परक्रियाओं के साथ मिलकर कई अन्य गोलाकार प्रिक्रयाओं को जन्म देती हैइन्ही चक्रों के संतुलन को जीवनभगवानराक्षसप्रकृतिनिर्माण या विनाश कहा जा सकता हैजैसे जब एक टेक्टानिक परत दूसरी के नीचे धस कर मरती है तो वो मरते मरते दूसरी परत के किनारों पर जमा अवसादो(जियोसिंक्लिन) को ऊपर उठा जाती है और जिस से पहाड़ का जन्म होता हैजैसे हिमालयजोकी खुद बादलो से बरसने वाली नदियों में घुल कर नष्ट होता हैपर वो नदियां चलते चलतेनमी के साथ उस पहाड़ को अपने आस पास सारी धरती पे बिखेर जाती हैं और खुद समुंदर में जा मिलती हैवो नमीवो बिखरा पहाड़ मैदानों का निर्माण करते हैंऔर एक अलग जीवन को जन्म देते हैं पेड़पौधेजीवजंतु जो खुद भी कभी  कभी नष्ट हो जाएंगे पर उस से पहले या उसके बाद वो भी किसी और जीवन का भाग होंगे।

हम अक्सर विनाश और निर्माण को दो अलग नजरो से देखते हैंकिंतु ब्रह्मांड में ऊर्जा और कणों की मात्रा सीमित हैकुछ बनेगा तो कुछ बर्बाद होगाये चेतना(कॉन्शियसजो मुझे तुम्हे कुछ पल के लिए मिली हैये पल बेहद जरूरी हैइस पल में मैं ये दुनिया अपने नजरिए से देखना चाहता हूं , इसके बाद मैं भी अपना ये अस्तित्व खो दूंगाअलग अलग कणों में टूट जाऊंगाशायद थोड़ा पत्थर , थोड़ा पेड़ , थोड़ा जानवरथोड़ा रेत।

 

नजरिया भी एक विचित्र शक्ति हैप्रकृति ने हमें कुछ भी सुनिश्चित करके नहीं दियाना काल,ना स्थानना मापना ही कुछ औरएक सच के अनेक सच संभव हैंजो गिनती डेसिमल में गिनेवो भी ठीककोई बाइनरी मेंवो भीमुंह से निकलने वाली एक ही ध्वनि की कितनी लिपि हैं, बस आगे जाती है या पेड़ पीछे जाते हैंये नजरिए और सहूलियत पे निर्भर करता है के किसी भी चीज को किस समयकिस हालत और किस जगह पर किस उपयोग के लिए किस नजरिए से देखा गयाकोई नेता कभी पगड़ी पहनेकभी तिलककभी मूल्ला टोपी.

मैं नजरिएधर्म और नेता को एक साथ लिखने की गलती कर चुका हूंतो मैं यहां धर्मराजनीतिसमाजआदमी पर थोड़ा और लिखने की कोशिश करूंगा ताकि किसी के नजरिए में सही हो जाऊंकिसी के में गलत। 

 

हम अक्सर चीजों को हम या तुमअच्छे या बुरे में डालने के पीछे भागते हैं और हम सदा अच्छे ही होते हैं। 

 

एक सच ये भी है आदमी बोहोत बड़ा "मैंहै और वो खुद को किसी भी "तूसे ज्यादा सही,बड़ा या अच्छा साबित करना चाहता हैऔर कई "मैंऔर "मैंमिलके एक "हमबनाता हैएक सच ये भी वो "हमएक दूसरे के काम भी आता है पर एक सच ये भी के जब उन्हें कोई और "तुममिले तो वो खुदको फिर से सहीबड़ा या अच्छा साबित करने के पीछे भाग पड़ता है , एक सच यह भी के वो "हमअपने किसी "मैंको "तूया "तुममें बदलता नही देखना चाहता। 

 

ये गुण या दोष और जानवरो में भी मिलता हैपर इंसान से बड़ा कोई "हमनही है,

जहां अलग नज़रिए उन्नति का काम करते हैं वही विचारो का टकराव भी पैदा होता है,

ये ही है इंसान की इंसान सेइंसान की समाज सेसमाज की इंसान सेसमाज की समाज सेदेश की देश सेपुरुष की औरत सेसमाज की औरत सेभगवान की शैतान से लड़ाई,

देश अपने सिद्धांतों का निर्यात करते हैंधर्म प्रचारक धर्म का फैलाओलोग एक दूसरे की पीठ पीछे बातयही है "समाज क्या कहेगाका नारा देने वाली आवाज का कारण।

 

इसमें कुछ अच्छा या बुरा नही कहा जा सकताये प्रकृति है,

जैसे डर हमें बुरे अनुभव से बचाता भी है और नए अनुभव से रोकता भी हैपर समझदारी केवल ये आखने में नही की कहां डर सही है और कहां गलतकिंतु खराब कितना खराब है सही कितना सही जानना भी बेहद जरूरी है।

 

एक समाज जिसमे प्यार करने की इजाज़त नहींएक समाज नहीप्रेम एक ऐसा विषय है जिसका मैं कभी सही आंकलन नही कर पायाअब मैं कोशिश भी नही करता,ये एक सत्य है जिसे सबको सुनना चाहिएकई स्थान पर आदमी को समाज के विकास के लिए त्याग करना चाहिए जैसे जरूरत से अधिक पूंजी और कई जगह समाज को आदमी के विकास के लिए , पर प्रेम एक विषय है जहां एक समाज और आदमी दोनो के विकास के लिए तार्किक रिश्तों के लिए समाज की सहमति होनी चाहिएक्योंकि प्रेम इंसान का एक ऐसा भाव है जो समाज में उदारतासहनशीलताविबिंता लाता हैअगर ये भाव भड़ेंगे तो ताकत के भाव के साथ संतुलन होगाजो समाज में व्यवस्था तो लाता है किंतु साथ लाता है छलकपटअहंकार जैसे भावयही कारण है कि आप जितना दूसरो को नीचे खींचकर ऊपर जाते हैंउसी तरह कोई आपको भी पीछे से खीच रहा हैबार बार ये प्रकृतियां इंसान में देखने को मिली हैतभी इतिहास खुद को दोहराता है। 

 

 प्रकृति के कुछ सिद्धांत है जो उसे हमेशा गोल घुमाते रहेंगेइस चक्र में इंसान कब तक रहना चाहता हैं ये हमारी तार्किकता और सद्बुद्धि पर निर्भर करता है।                                                  

                               - शुभम्   


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